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Kalsarp Dosh Nivaran Pujan in Ujjain

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गुरुदेव सागर जी का देश विदेश में भी ज्योतिष के क्षेत्र में काफी नाम है। आचार्य श्री का ज्योतिष के क्षेत्र में और समाज सेवा के क्षेत्र में भी बहुत बड़ा योगदान है आचार्य जी 15 वर्षो से ज्योतिष के क्षेत्र में कार्य कर रहे है…

kalsarp pujan in ujjain

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कालसर्प दोष के बारे में

About Kalsarp Dosh

kalsarp

क्या होता है काल सर्प दोष

 

कालसर्प दोष के बारे में कहा जाता है की यह कष्ट कारक एवं ऐश्वर्य दायक होता है I तात्पर्य है की जिन लोगो की कुंडली में ये दोष होते है वह प्रसिद्धि और ऐश्वर्य पाते है परन्तु उन्हें साथ में कष्ट भी भोगने पड़ते है I  ऐसे जातको का जीवन सामान्य लोगो की तुलना में अधिक संघर्ष शील होता है I जातक की जन्मपत्रिका में जब राहु केतु के मध्य में या राहू केतु के प्रभाव में सभी ग्रह आते है तो कालसर्प दोष बनता है I जिसके फल स्वरूप जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है छोटे-छोटे कामों के लिए जीवन में संघर्ष करना पड़ता है धन, विवाह, स्वास्थ्य आदि सभी को यह प्रभावित करता है I

क्या काल सर्प दोष का निवारण सम्भव है ?

ये जानना बहुत जरूरी है की इसका निवारण संभव है के नहीं I विद्वानों की माने तो राहु केतु के प्रभाव से बच पाना असंभव है क्योकी ग्रहो की स्थिति बदलना असंभव है उसी प्रकार आपकी नियति भी नहीं बदल सकती | किन्तु महादेव की कृपा से इसका प्रभाव को कम किया जा सकता है I

कैसे जाने की आपकी कुंडली में काल सर्प दोष है?

वैसे तो आप किसी विद्वान को ब्राह्मण को अपनी कुंडली दिखाएंगे तो देखते ही बता देगा किन्तु अगर आपके जीवन में कुछ ऐसे संकेत मिल रहे है जैसे :

  1. जीवन में स्थायी या ऐतिहासिक समस्याएं और चुनौतियां
  2. विवाहित जीवन में संबंधों में विघ्न और अवसाद
  3. नौकरी और व्यवसाय में समस्याएं और स्थायी असफलता
  4. स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं और उच्च टेंशन
  5. सपने में उसे नदी, तालाब,कुए,और समुद्र का पानी दिखाई देता है।

  6. सपने में वह खुद को पानी में गिरते एवं उससे बाहर निकलने का प्रयास करते करते हुए देखता है।

  7. पानी से ओर ज्यादा ऊंचाई से डर लगता है |

  8. मन में कोई अज्ञात भय बना रहता है |

  9. वह खुद को अन्य लोगो से झगड़ते हुए देखता है।

  10. उन्हें बुरे सपने आते है जिसमे अक्सर साँप दिखाई देता है।

  11. यदि वह संतानहीन हो तो उसे किसी स्त्री के गोद में मृत बालक दिखाई देता है।

  12. सपने में उसे विधवा स्त्रीयां दिखाई पड़ती है।

  13. नींद में शरीर पर साप रेंगता महसूस होता है।

  14. श्रावन मास में मन हमेशा प्रफुलित रहता है |

तो आपको समझ लेना चाहिए कालसर्प का प्रभाव है I 

जब तक काल सर्प दोष का पूजन उज्जैन में न हो तब तक क्या करें ?

ये बहुत महत्वपूर्ण है, जब तक काल सर्प दोष का पूजन उज्जैन में आकर न करवा ले तब तक भगवान शिवजी का स्मरण करते रहे, सोमवार को भगवान शिव को जल चढ़ाये और ॐ नमः शिवाय का निरंतर जाप करते रहे, भगवान महाकाल अवश्य ही कल्याण करेंगे।

बारह प्रकार के कालसर्प योग

राशि चक्रानुसार कुल बारह राशियाँ हैं जो मेष, वृष, मिथुन, कर्क,सिँह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ तथा मीन हैं I तथा जन्मकुंडली में कुल बारह ही भाव होते हैं जो क्रमश: लग्न, धन,पराक्रम, सुख, सन्तान, रोग, गृहस्थ, आयु, भाग्य, कर्म, लाभ वव्यय भाव हैं I

प्रमुखरूप से मूलभूत बारह प्रकार के ‘कालसर्प योग’ हैं. जिनके बारेमेंआपको यहाँ जानकारी दी जा रही है I 

अनन्त कालसर्प योग:-

जन्मकुंडली में प्रथम भावगत (लग्न) राहु और सप्तमस्थ केतु होने पर अनन्त कालसर्प योग उत्पन्न होता है I

* इस योग में जातक का स्वभाव मनमौजी होता है एवं जीवन में कईं बार उसे स्वजनों से धोखा उठाना पडता है I
* जातक दिमाग की अपेक्षा मन से काम लेने वाला होता है, जिसके फलस्वरूप जीवन के मध्यकाल तक समय-समय पर हानि-परेशानी के अवसर ही मिलते हैं I
* मुख व मस्तिष्क अर्थात शरीर में गले तक के हिस्से में किसी रोग का सामना करना पडता है I
* इनके जीवन का सर्वप्रमुख फल ये है कि स्त्री के सहयोग से ही ये जीवन में उत्थान करते है और फिर पतन भी स्त्री (पराई) के कारण ही होता है I

कुलिक कालसर्प योग:

जब द्वितीय राहू और केतु अष्टम भाव में स्थित हो तो ‘कुलिक कालसर्प योग’ का निर्माण होता है I

(1) ये जातक धन और परिवार के प्रति सदैव चिन्तित रहते हैं I
(2) पराए एवं दुष्ट-जन कुदृष्टि से प्रभावित ये जातक जीवन-विकास में समय-समय पर प्रभावित होते हैं I ये समझ नहीं पाते कि कौन इनका मित्र और कौन शत्रु है, फिर भी ये हँसते-हँसते व स्वयं जीते और दूसरों को भी जीने देते हैं.इनका पराक्रम ही इन्हे उठाता और बुद्धिमानी ही प्रगति पर ले जाती है I
(3) इनमें धन संचय की प्रवृति बहुत ही कम होती है अर्थात मुक्त-हस्त होते हैं, जिस कारण ये जीवन भरआवश्यक धन संचय से वंचित रहते हैं I
(4) इनके जीवन की अधिकतर परेशानियाँ इनकी वाणी की वजह से ही आती हैं, क्योंकि अवसरानुकूल वाणी का उपयोग करने की कला में ये लोग निष्णात नहीं होते I

वासुकी कालसर्प योग:-

तृतीय भाव अर्थात पुरूषार्थ भाव से नवम भाग्य भाव के मध्य अन्य सभी ग्रह आने पर ‘वासुकी कालसर्पयोग’ घटित होता है I

(1) भाई-बहन व परिवारीजनों से निरन्तर कष्टों, अपमान आदि का सामना करना पडता रहता है I
(2) गृहस्थ जीवन विश्रृंखलित रहती है तथा पति-पत्नि में परस्पर कटुता, तनाव,वैचारिक मतभेद, कलह, विरोध तथा कामसुख से असंतुष्टि बनी रहती है I
(3) भाग्य कदम-कदम पर इन लोगों के साथ खेल खेलता है I भाग्य में निरन्तर उठा-पटक तथा भाग्योदय में अनेकानेक बाधाएं उत्पन होती रहती हैं I
(4) इन जातकों का धर्म के प्रति रूझान सदैव कम रहता है I जीवन के किसी काल विशेष में मन में नास्तिक भाव भी जागृत होने लगते हैं I
(5) नौकरी में बाधाएं, तरक्की में रूकावटों के साथ-साथ नौकरी छूटने या सस्पेंड होने का भय बना रहता है I

शंखपाल कालसर्प योग:-

जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में राहु और दशम में केतु के स्थित होने पर ‘शंखपाल कालसर्प
योग’ का निर्माण होता है I

(1) जातक के अपने माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों से निरन्तर कोई न कोई मतभेद बने रहते हैं I
(2) जीवन पर्यन्त घर से भागे-भागे फिरना, वाहनप्रिय होना और किसी पेशे-व्यवसाय पर न टिककर स्वतन्त्र व्यवसाय की खोज में लगे रहना इन लोगों का स्वभाव बन जाता है I
(3) जीवन के 1/4 भाग से 3/4 भाग तक ये अपनी व्यथा अपने सीने में दबाये रहते हैं I इनके मित्र भी बेहूदे और स्वार्थी होते हैं, जो वक्त-बेवक्त किसी मदद की अपेक्षा सिर्फ खाने-उडाने को ही मित्रता का पर्याय समझते हैं I
(4) 48 वर्ष की आयु तक जीवन में स्थिर आमदनी का अभाव रहता है I  परिवार एवं समाज में मर्यादा बनाये रखने में भी इन्हे कठिनाईयों का सामना करना पडता है I

पदम कालसर्प योग:-

पंचम स्थान से एकादश स्थान तक राहु-केतु के मध्य सभी ग्रह होने पर पदम कालसर्पयोग निर्मित होता है I

(1) जातक को जीवन भर सन्तान पक्ष की ओर से चिन्ता-परेशानी लगी रहती है I प्रथम तो पुत्र संतान होने में व्यवधान रहेगा दूसरे, दैवयोग से संतान होने पर भी जीवन भर सन्तान के गलत आचरण, उसके मन की प्रकृति को लेकर चिन्ता लगी रहती है I अर्थात इनकी सन्तान जी-जलाने वाली होती है I
(2) जुआ, सट्टा, शेयर मार्किट इत्यादि कार्यों में भारी हानि उठानी पडती है I
(3) वृद्धावस्था कष्टमय व्यतीत होगी I यदा-कदा पेट, कुक्षी एवं टाँगों सम्बन्धी रोग-बीमारी का सामना करना पडता रहेगा I

महापदम कालसर्प योग:-

जन्मपत्रिका के छठे रोग व शत्रु भाव में राहु और बाहरवें व्यय भाव में केतु सहित अन्य सभी ग्रह इनके मध्य स्थित होने पर महापदमकालसर्प योग उत्पन्न होता है I

* जातक दूसरों की सहायता कर सदैव अपने लिए मानसिक प्रतिद्वंदिता ही बढाते हैं I
* इन्हे जीवन-यापन की कोई विशेष कठिनाई तो नहीं होती किन्तु आसमान छूने जैसी कल्पना बनी रहती है I
* आसपास के लोग इन जातकों को कलंकित करने पर अवसर ढूँढ-ढूँढ कर लाँछित करने का प्रयास करते रहते हैं परन्तु जातक निज बुद्धि कौशल से इन परेशानियों से पार पा जाता है I
* जातक अपने अर्थोपार्जन के साधनों पर असंतुष्ट रहता हुआ भी तीव्रतम आकांक्षा लिए उम्मीदों पर जीता है I

तक्षक कालसर्प योग:-

सप्तम भाव में राहू और लग्न में केतु के स्थित होने पर ‘तक्षक कालसर्प योग’ का निर्माण होता है I

(1) जातक धन-परिवार स्वाभिमान आदि के लिए संघर्षशील रहकर जीवन भर झूझता ही रहता है I कभी-कभी तो जीवन से ऊबकर घर-गृहस्थी को त्याग देने के भी मन में विचार जन्म लेने लगते हैं I
(2) सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से इन्हे जीवन में धोखा ही उठाना पडता है, फिर चाहे वह अपना स्वयं का जीवन साथी ही क्यों न हो I
(3) दिल की आग को दिल में रखकर जीना एक तरह से इन लोगों का स्वभाव ही बन जाता है I
(4) विद्यार्थी से लेकरअपनी नौकरी अथवा निजि व्यवसाय में शिखरता पाकर भी दैववश कोप का भाजन बनते हैं और शिखरता धरी रह जाती है I

कार्कोटक  कालसर्प योग:-

जब केतु द्वितीय व राहु अष्टम अथवा राहु द्वितीय व केतु अष्टम भाव में हो तो ‘कर्कोटककालसर्प योग’ होता है I

(1)जातक जीवन पर्यन्त भाग्य की ओर से परेशान रहता है. 48 वर्ष की आयु तक विकट संघर्षमय परिस्थितियों का सामना करना पडेगा I वृद्धावस्था की आयु में जाकर भाग्य का साथ मिलेगा I लेकिन ‘का बरखा जब कृषि सुखाने’ I
(2) अथक प्रयास करने पर भी व्यापार जमता नहीं, नौकरी करे तो उसमें भी स्थायित्व न रहे, बार-बार जगह बदलनी पडे I
(3) पैतृक सम्पति को लेकर भाई-बन्धुओं से लडाई-झगडे, मतभेद की स्थितियाँ निर्मित होंगी I
(4) जीवन में सच्चे मित्रों का अभाव रहेगा I मित्रों की ओर से धोखा एवं हानि का सामना करेगा और कुमार्ग की ही शिक्षा मिलेगी I
(5) एक बार किसी लम्बी-असाध्य-दुरूह बीमारी के चलते आपरेशन-चीर फाड-शल्य क्रिया करवानी पडेगी I

शंखचूड  कालसर्प योग:-

नवम भाव में राहू और तृतीय स्थान में केतु के होने पर ‘शंखनाद कालसर्पयोग’ का निर्माण होता है I

(1) जातक को भाग्य और कर्म पक्ष के उत्तम होने पर भी जीवन भर कोई न कोई कष्ट उठाने ही पडते हैं I इनके गुप्त शत्रु कम न होकर बढते ही जाते हैं I
(2) नाम और व्यवसाय की उत्तरोतर वृद्धि पर भी ये लोग स्वयं ही अपने हाथों विनाशकर बैठते हैं I
(3) इनका सहनशील व्यवहार देखकर इनसे मिलने वाला प्रत्येक व्यक्ति इनसे लाभ उठाता है I
(4) जीवन में की गई स्वयं की गलतियाँ जीवन भर अन्तर्मन को पीडित किए रखती हैं I

घातक  कालसर्प योग:-

यह योग क्रम से जन्मकुंडली के दसवें भाव में राहु और चौथे केतु होने पर अपने शरीर में सभी ग्रहों को समाये रहता है I

(1) जातक का गृहस्थ जीवन परिवार-जनों से असंतुष्ट रहता है और पैतृक सम्पति को लेकर निजिजनों से विवाद पैदा होते हैं I
(2) आजीविका अथवा व्यवसाय सम्बन्धी समस्या मुंह बाये खडी रहती हैं I
(3) इस योग के जातक काल के गाल में फंसे ही रहते हैं I इन्हे ह्रदय कष्टसाध्य, विलम्बी अथवा किसी आसाध्य योग का भी सामना करना पडता है I
(4) जीवन में लोगों के अहसान और ऋण का भार उत्तरोतर चढता ही जाता है I

विषधर  कालसर्प योग:-

जन्मकुंडली में जब एकादश भाव में राहु को लेकर केतु अन्य भावों सहित सभी ग्रहों को समेटे रहता है तो ‘विषधर कालसर्प योग’ का निर्माण होता है I

(1) जातक जीवन के तीन मूल सुख विद्या, धन और पुत्र संतान में से किसी एक को पाकर ही संतुष्ट रहने को विवश होता है I
(2) भावावेश और उदारवादिता के कारण जीवन में बारबार क्षति का सामना करना पडता है I
(3) मधुमेह (डायबिटीज), विषव्रणादि(अल्सर)आदि किसी दीर्घव्यापी रोग से ग्रसित रहते हैं I
(4) बडे भाई/ताऊ/चाचा के कारण अथवा मनोवांछित लाभ की चिन्ता इन्हे सदैव सताये रहती है I

शेषनाग कालसर्प योग:-

जन्मकुंडली में बाहरवें भाव में राहु व छठे केतु के अन्तर्गत जब अन्य सभी ग्रह होते हैं तो यह ‘शेषनाग कालसर्पयोग’ बनता है I

* जातक किसी भी परिस्थिति के संसर्ग में आकर उसमें ढलने को सहज ही प्रस्तुत हो जाता है I
* इनके जीवन के प्रत्येक कार्य अनायास ही बनते हैं I स्वयं की सोच-समझ बेकार जाती हैं I
* जीवन के किसी मोड पर इनकी वृति रचनात्मक होने के साथ-साथ विपरीत वातावरण पाकर विकृत हो उठती है I
* 48 वर्ष की अवस्था तक लाभदायक स्थितियाँ किन्तु उसके पश्चात एकदम से पतन का समय आरम्भ हो जाता है I

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